• +91-8656940990
  • visheshgupta1989@gmail.com

About Kesharwani Samaj

Kesharwani Samaj

केसरवानी वैश्य का इतिहास

केसरवानी वैश्य की जन्म भूमि भारत वर्ष के उत्तर कशमीर में है, और यह जाति वतिष्ठा नदी (जो झेलम नदी के नाम से प्रसिद्ध है) के तट पर बसे हुये नगर पामपुर व उन्तीपुर और नीवा और बारामूला के निकट बसा हुआ सुपुर (शिवपुर) और श्रीनगर के पूर्व में आबाद थी पर विशेष कर शुभ नगरी शिवपुर इनके रहने का प्रतिष्ठित स्थान था, जहाँ पर इस जाति के हजार से बारह सौ कुटुम्ब बसते थे। इनका रंग गोरा, कद लम्बा, शरीर सुडौल व बलवान था और भांति-भांति के अस्त्र-शस्त्र बांधते थे और समय-समय पर अपनी साहस व शूरता का प्रकाश किया है, और धन से भी सहायता की है।
इनका मुख्य व्यवसाय केसर की खेती व उसी का व्यापार था। इनका व्यापार चीन, अफगानिस्तान, मिश्र, तिब्बत, यूनान, फारस इत्यादि देशों से और भारत के सब प्रान्तों से होता था और इसमें बड़ी सफलता प्राप्त करके बहुत धन व ऐश्वर्य कमाया था। इनका राजाओं व सरदारों व रईसों में बड़ा मान था, और पूर्ण धर्म व शुद्ध आवरण से जीवन व्यतीत करते थे। इसी व्यवसाय के कारण यह जाति केसरवानी के नाम से प्रसिद्ध हुई।
कशमीर नरेश महाराज हर्षदवे के समय से महाराजा जयसिंह के राज्य तक लगभग २०० वर्ष में इनका बड़ा मान मर्यादा रहा और वैश्य कर्म-धर्म में श्रेष्ठ रहे। राजा जयसिंह का राज्य कशमीर में सम्वत् ११८५ से १२०६ तक रहा।
महमूद गजनवी का अत्याचार व आक्रमण जगत विख्यात है, जिसके कारण भारतवर्ष की प्रजा पर महान कष्ट पड़ा और बड़े-बड़े शहर, देव स्थान व मन्दिर लूटे और तोड़े गये और समय-समय और स्थान-स्थान पर घोर युद्ध हुआ, और रूधिर नदियों की प्रवाह में बहा। महमूद गजनवी का सबसे पहला आक्रमण गुजरात देश के सोमनाथ मंदिर पर सम्वत् ११८२ में हुआ। यह मन्दिर रत्न व सुवर्ण से इतना जटित व भरपूर था कि रात्रि के समय रत्न जो मूर्ति व मन्दिर में लगे थे दीपक का काम देते थे और सुवर्ण का एक घण्टा नौ मन का मन्दिर में लटकता था। इस मन्दिर को इस म्लेच्छ राजा ने खण्डित करके सारा धन व सम्पत्ति जो इसमें एकत्रित था अपने देश गजनी को ले गया और लौटते समय पंजाब में अपना एक सेनापति शासन हेतु नियुक्त कर गया, और पंजाब १५० वर्ष तक इस तरह गजनी के राज्य अधिकार में रहा।
कशमीर में कलहना पण्डित रचित राजतंरगिणी इतिहास से मालूम पड़ता है कि कशमीर देश पर महाराज जयसिंह के समय में मुहम्मद नामी गजनवी राज्य प्रतिनिधि पंजाबी में सं० ११६० में आक्रमण किया था और मुख्य कार्यकर्त्ता मंत्री भोज को मिला कर कशमीर निवासियों की सेनाओं में घोर संग्राम हुआ पर पठानों की सेना शिवपुर तक पीछा करती आई और केसरवानी नगर शिवपुर को घेर लिया। केसरवानी वैश्यों ने इस दुर्घटना से बचने के हेतु यथा शक्ति पठानों की सेना का सामना किया और कुछ काल के लिये म्लेक्षों को शिवपुर से हटा दिया। इस लड़ाई में बहुत से केसरवानियों को स्वर्ग लाभ हुआ. और जब म्लेक्ष सेना की शक्ति और बल बहुत बढ़ने लगी और भांति-भांति के अत्याचार शिवपुर निवासियों पर म्लेक्षों के द्वारा होने लगे तब शेष केसरवानियों ने अपने धर्म, पथ और मान की रक्षा के लिए शिवपुर को छोड़ने का निश्चय करके रात्रि में देहली को प्रस्थान किया। म्लेक्षराज को जब इनके शिवपुर छोड़ने की खबर लगी तब उसने अपनी सेना को इनका पीछा करने के लिए भेजा। कशमीर की सरहद पर पहुँचते-पहुँचते केसरवानियों से फिर संग्राम हुआ और बहुत से पठान मारे गये जो बाकी बचे कशमीर लौट गये और शेष केसरवानियों की गिनती बहुत थोड़ी हो गयी थी इनके साथ स्त्रियों और बालक भी थे और पंजाब निकट होने के कारण पठानों का खटका इनके हृदय में बना रहा, इस कारण देहली में बहुत काल तक न ठहर सकें और पूर्व दिशा को प्रस्थान किया। इस देहली में महाराजा पृथ्वीराज (जिनको राय पिथौरा भी कहते हैं) राज करते थे। केसरवानी वैश्य महा दुखित और पीड़ित अवस्था में १०० कुटुम्बों के लगभग गाँव-गाँव नगर-नगर घूमते फिरते प्रयाग निकटवर्ती श्री गंगा जी के तट पर बसा हुआ कड़ा मानिकपुर पहुँचे। यह नगर उस समय में बहुत आबाद था और भांति-भांति के व्यापार इसमें होते थे।
देश देशान्तर के व्यवसायी और व्यापारी इसमें एकत्रित होते थे और धन-धान्य से परिपूर्ण गंगा के दोनों सिरों पर बसा हुआ था। यहाँ के पुराने मकानों से पूर्व के चमत्कार का भली भांति ज्ञान होता है। केसरवानी वैश्य इस नगर को देखकर बहुत प्रसन्न हुये और शान्ति पूर्वक निर्वाह करने के लिए गौड़ ब्राह्मण पण्डित श्रेणीधर महाराज जी ने इनकी बड़ी सहायता की और निवास स्थान दिया और केसरवानी वैश्य और उक्त पण्डित जी का प्रेम परस्पर बढ़ा। इसी कारण पण्डित श्रेणीधर के कुटुम्बियों का केसरवानियों में बड़ा मान है।
ऊपर लिखी दुर्घटना का बोध नीचे लिखी सरल कविता से भली-भांति होता
है:
सोरठा:
कशमीर शुभ ग्राम। केसरवानी तामें बसें
गजनी कियो संग्राम। द्वादस मास रणसु विते,

कवित्त:
समर में निसंक बंक वांकुरे विराजमान,
सिंह के समान सोहे सेना, बीच गज के।
बांये हाथ मोछन पै ताव देत बार-बार,
मोहम्मद शाह गजनवी कहत धर मारू मारू,
धाये शेष छानवे हृदय में विचार के।
ताके भय भांति कड़े मानिकपुर आये शेष,
पण्डित श्रेणीघर शरण ताके काल को निवारों हैं।


केसरवानी वैश्य का इतिहास
केसर की खेती

यहाँ पर थोड़ा सा केसर की खेती का हाल देना उचित जान पड़ता है। केसर की खेती बड़े आश्चर्य जनक रीति से होती है। इसके खेत पामपुर व उन्तीपुर के करेवा (ऊँची धरती) पर कछुआ के आकार तिनकोन्ने होते हैं। यह ढलवे इस वास्ते बनाये जाते है कि बरसात का पानी ठहर कर केसर के पेड़ को सड़ा न दे। केसर एक तीव्र सुगन्ध वाली व अत्यन्त तरावट देने वाली लच्छेदार वस्तु है, जो बड़े मूल्य से बिकती है। यह केसर के फूल का रेशा है, जो सांप के जीभ की नाई एक फूल में ३ या ४ होता है। फूल कार्तिक के महीने में फूलने लगते हैं। खेतीहार इनको काटते जाते हैं पर यह फिर उसी जगह पर निकलते जाते हैं।
इसका बीज बोया नहीं जाता। इसके अतिरिक्त पेड़ एक बार लगाने से पुश्तहापुश्त (५० से १०० वर्ष तक) बना रहता है। इसकी जड़ २ से ३ फीट गहरी नीचे धरती में फैली रहती है और पेड़ ऊपर को लता की नाई फैलता है। इसका फल, फूल के रेशा (केसर) सब ही बड़ी उपयोगी वस्तु है। परन्तु केसर को हकीम, वैद्य, डाक्टर सब दवा के काम में लाते हैं। दुर्भाग्यवश अब इसकी खेती विशेषतः मुसलमानों के हाथों में आ गई है।

केसरवानियों का दूसरे नगरों में फैलना

केसर बनिज कशमीर तक ही रही क्योंकि कड़े माणिकपुर आने पर यह लोग अपने सुभीते के अनुसार भांति-भांति के व्यापार करने में लगे। कुछ दिन में यहाँ इनकी एक बड़ी बस्ती हो गई। इनमें से कुछ लोग गंगा जी के दूसरे किनारे पर घर बना कर बस गए। यह स्मरण रहे कि गंगा इस पार कड़ा दारानगर है और उस पार कड़ा मानिकपुर बसा है। धीरे-धीरे कुछ लोग प्रयाग, मिर्जापुर व बनारस आये, कुछ व्यापार की खोज में फतेहपुर, कानपुर, लखनऊ इत्यादि नगरों में पहुँचे और जहाँ जिनका ठिकाना लगा वहाँ बस गये। इसी भांति देहातों में पहुँचे और मण्डियों में अनेक प्रकार का व्यापार करने लगे। कड़े से निकट होने के कारण प्रयाग, मिर्जापुर व बनारस में इनका अच्छा सिलसिला जम गया और इन नगरों में धीरे-धीरे इनकी बड़ी बस्ती हो गई। प्रयाग, बनारस, मिर्जापुर, फतेहपुर, कानपुर इत्यादि से बांदा, गाजीपुर, जौनपुर, गोरखपुर, इटावा, फैजाबाद, फरूखाबाद, बरेली, बलिया इत्यादि गये और इसी भांति इस प्रान्त के और नगरों में और रीवां के रियासत की ओर (हनुमान) गए और बिहार (गया व पटना इत्यादि) व बंगाल, मुर्शिदाबाद, वर्धमान, कलकत्ता इत्यादि व मध्यप्रदेश के सूबे (जबलपुर, सागर व नागपुर इत्यादि) में फैले। अब कुल गिनती केसरवानियों की सम्पूर्ण भारतवर्ष में ७०,००० के लगभग है।



Scroll to top