केसरवानी हेल्पलाइन
केसरवानी मुल रुप से कश्मीर के निवासी हैं केसरवानी समाज के कुलगोत्र भगवान महर्षि कश्यप जी है भगवान महर्षि कश्यप जी के नाम पर हमारे राज्य का नाम कश्मीर पड़ा! वास्तव में केसरवानी कश्मीरी ब्राहम्ण (पंडित)है, मुस्लिम आतंक के वजह से अपना सम्मान बचाने के लिए केशरवानी समाज को कश्मीर छोड़ना पड़ा, क्योंकि केशरवानी समाज के लोग कश्मीर में केशर की खेती और व्यापार करते थे, कश्मीर छोड़ने के बाद केशर की खेती का कार्य बन्द हो गया, क्योंकि हमारे जमीन पर दुसरे धर्म के लोगों ने कब्जा कर लिया था, इसलिए हमलोग अपने अनुभव के कारण केशर का व्यापार (वाड़ी) करने लगे अन्य समाज के लोग केशर के व्यापार के कारण हमें,हमारे समाज को केशरवानी वेश्य समझने लगे! इस प्रकार केसरवानी कश्मीर से निकलकर देश के दुसरे राज्यों में जाने लगे, जो जिस परिवार से जाता था उसे एक चिन्ह दिया गया, जिसे हम बान कहते हैं, समान बान का होना यह दर्शाता है भूतकाल में हम (केसरवानी) एक परिवार के रहे होंगे, और इसीलीए समान बान होने पर या एक बान होने पर आज भी केशरवानी समाज में आपस में सादी नहीं होती है! शादी होने के लिए दुसरा बान होना चाहिए, लेकिन हमारे कुलगोत्र सभी केसरवानी परिवार के भगवान महर्षि कश्यप जी ही है, यह हमारी असली पहचान है बिस्तृत वर्णन हमारी किताबों में संग्रहित है!
यह बात मुझे मेरा एक केशरवानी दोस्त ने हमारा इतिहास बताया, इसलिए मैं जानता हूँ! कहीं ना कहीं लोग पूछ देते हैं केशरवानी कौन है, क्या होते है, किस समुदाय के हैं, बहुत से लोग हमारे सरनेम के अन्त में वानी होने के कारण हमें सिंधी समझते है, लेकिन ना हम सिंधी है और नाहीं हमारा सिंध से कोइ सबंध है हम कश्मीरी पंडित (ब्राम्हण) है जिन्हें समाज में व्यापार करने के कारण वैश्य समझा जाता है! कियोंकि उस समय कार्य के अनुसार जाति का निर्धारण होता था, हम व्यापार करते थे या करते है इसलिए लोग हमें वैश्य समझते है या समझते थे हमारा सबंध कश्मीर से है, हम केसरवानी है हमारे समाज में कोई सरनेम गुप्ता,केसरी,केशरी,केसरवानी,साह,चौधरी,आढ़तिया,केशर इत्यादि लिखते है,आज देश बिदेश में जो भी केसरवानी है उन्हें वैश्य के रुप में समाज में लोग जानते है